हमारा मन दो भागों में बंटा होता है – चेतन मन और अवचेतन मन। चेतन मन से हम सोचते हैं, फैसले लेते हैं और रोज़मर्रा के काम करते हैं। लेकिन अवचेतन मन वह हिस्सा है जो बिना किसी सोच के चुपचाप काम करता रहता है। यह मन न तो सवाल करता है और न ही तर्क – यह केवल वो सब कुछ ग्रहण करता है जो आप बार-बार सोचते या महसूस करते हैं।
उदाहरण के लिए, अगर किसी बच्चे को बार-बार कहा जाए कि "तू कुछ नहीं कर सकता," तो यह बात उसके अवचेतन मन में बैठ जाती है। वह बड़ा होकर भी खुद पर विश्वास नहीं कर पाता। वही दूसरी ओर, अगर किसी को बचपन से यह सिखाया जाए कि "तू कुछ भी कर सकता है," तो वह आत्मविश्वासी बनता है।
अवचेतन मन आपकी यादों, भावनाओं, आदतों और विश्वासों को कंट्रोल करता है। यह मन नींद में भी सक्रिय रहता है और आपकी सोच को धीरे-धीरे हकीकत में बदल देता है।
इसलिए, जो आप अपने बारे में बार-बार सोचते हैं, वही आपका जीवन बन जाता है। आप जैसा खुद को समझते हैं, वैसा ही बनने लगते हैं। यही वजह है कि सकारात्मक सोच, आत्म-संवाद और ध्यान का अभ्यास बेहद जरूरी है।
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